सेशल स्टोरी – वाया :  The Wire.

2015 में टाइम पत्रिका ने नरेंद्र मोदी को “Why Modi Matters” शीर्षक के साथ कवर पेज पर जगह दी थी, इस शीर्षक के लेख में उम्मीद व्यक्त की गयी थी कि मोदी भारत को एक वैश्विक शक्ति के रूप में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेंगे। चार साल बाद, भारत में लोकसभा चुनावों के बीच उसी प्रतिष्ठित पत्रिका TIME ने मोदी को एक बार फिर से कवर किया, लेकिन इस बार शीर्षक दिया है “India’s Divider in Chief.””

आदर्श रूप में इस तरह का आइना दिखाने का काम देश की मीडिया को करना चाहिए जो कि दुर्भाग्य से मोदी भक्ति में लीन है, जो मोदी और अमित शाह के इंटरव्यूज लेकर गुणगान कर रहे हैं, यह जोड़ी हर चीज के बारे में बात कर रही है, धर्म और राष्ट्रवाद से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की छुट्टियों और उन पर सिद्ध नहीं हो पाए भ्रष्टाचार के मामलों तक। राष्ट्रिय मीडिया भी जनता से जुड़े मौलिक मुद्दों से इतर हर मुद्दे पर बात कर रहा है।

‘डिवाइडर इन चीफ’ से तकलीफ तो होना अवश्यम्भावी है क्योंकि ये सच है, ऐसा कोई चुनाव नहीं हुआ जिसमें लोगों को एक सुनियोजित रणनीति के तहत इस तरह से विभाजित किया गया हो, वैसे भी यह सच है कि लोकतांत्रिक राजनीति में विभाजन की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जब नागरिक अपने नेता को प्रतिस्पर्धी उम्मीदवारों से चुनते हैं। लेकिन जब सत्तारूढ़ ही जब विरोधियों और असहमतों को देशद्रोही के रूप में प्रस्तुत करे और और ध्रुवीकरण की इस विषाक्त प्रक्रिया से किसी भी संस्था को नहीं बक्शे तो ये हमारे लिए एक समस्या है।

इस चुनाव अभियान में मोदी ने सेना और नौसेना दोनों को कैसे विभाजित किया है, इस पर विचार करें। सरकार की साख को किनारे करते हुए भारतीय सेना ने आधिकारिक तौर पर इस बात से इंकार किया है कि मोदी सरकार की स्व-घोषित सर्जिकल स्ट्राइक की तारीख से पहले 29 सितंबर, 2016 को नियंत्रण रेखा के पार आतंकी शिविरों पर हमले हुए थे। मोदी ने उक्त पहले वाले सर्जिकल स्ट्राइक को “वीडियो गेम” के रूप में उल्लेख किया था।

अन्य पर्यवेक्षकों ने भी इस तरह के हमलों को सूचीबद्ध किया है। इन हमलों को अंजाम देने वाले दिग्गजों ने मोदी सरकार के रुख पर नाराजगी जताई है। रक्षा हलकों में यह सर्वविदित है कि 1990 के दशक के मध्य में जब जनरल बीसी जोशी सेना प्रमुख थे, तब से सीमा पार के लिए हमले को अधिकृत किया गया था।

इन्होने पाकिस्तान की नाक के नीचे सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने के लिए नाटकीय और कठिन ऑपरेशन को भी ध्यान में नहीं रखा जब 1985 में बैसाखी के दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को खदेड़ कर सिक्किम के आकार के ग्लेशियर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था, पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना को बाहर धकेलने के प्रयास में अपना सब कुछ झोंक दिया, लेकिन नाकाम रहे, तब से भारतीय सेना को महान सामरिक महत्व के रूप में पहचान मिली थी।

भाजपा से जुड़े सैन्य अफसर जनरल (सेवानिवृत्त) वीके सिंह भी अपनी सरकार का बचाव करते हुए अपने कार्यकाल में किसी भी तरह के सर्जिकल स्ट्राइक होने से साफ़ इनकार किया था।

यहां तक ​​कि अगर हम इनकार करने वालों की ईमानदारी पर सवाल नहीं उठाते हैं, तो समस्या श्रेय लेने की है। भाजपा ने सितंबर 2016 के क्रॉस-एलओसी छापे को “सर्जिकल स्ट्राइक” के रूप में गलत तरीके से पेश किया और अब भाजपा सरकार ये दावा कर रही है कि इससे पहले ऐसे कोई भी घटना (“सर्जिकल स्ट्राइक”) ही नहीं हुई है।

भाजपा ने इस बहस से वोटों के अलावा क्या हासिल किया है ? क्या वोटों के लिए सैनिकों की बहादुरी का राजनीतिकरण करना सही है ? इस हरकत ने सेना को राजनीतिक तौर पर विभाजित किया है और सेना के जवानों की एक पूरी पीढ़ी की बहादुरी और समर्पण पर सवाल उठाया है, जिन्होंने 1990 के दशक और 2000 के दशक में आतंकवादियों के खिलाफ एलओसी पर हमले किए थे।

पिछले सप्ताह, भारतीय सेना के बाद नौसेना को लेकर मोदी ने अपनी इसी रणनीति के तहत दावा किया था कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने छुट्टी के लिए विमान वाहक पोत आईएनएस विराट का इस्तेमाल किया था। मोदी ने कहा कि राजीव ने परिवार और दोस्तों के साथ छुट्टी के दौरान “व्यक्तिगत टैक्सी” के रूप में वाहक का इस्तेमाल किया था और इस प्रक्रिया में राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किया था।

कमांडर (retd) वीके जेटली और लेफ्टिनेंट कमांडर हरविंदर सिक्का के इस दावे का समर्थन किया गया था, दोनों ने जहाज पर सेवा दी थी। एक आरोप था कि सोनिया गांधी के रिश्तेदारों और अन्य दोस्तों सहित विदेशी नागरिक यात्रा पर थे।

लेकिन मोदी जी के दावों का उसी समय विराट के कप्तान, वाइस एडमिरल (सेवानिवृत्त) विनोद पसांचा द्वारा इस आरोप का दृढ़ता से खंडन किया गया, इसके बाद, तत्कालीन फ्लीट ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ दक्षिणी नौसेना कमान (FOC-in-C, एसएनसी), एलएन रामदास (जो बाद में नौसेना प्रमुख बने) ने भी बयान कि उस समय वहां कोई विदेशी शामिल नहीं थे, बल्कि यह कि आईएनएस विराट पर प्रधान मंत्री के तौर राजीव गांधी की एक आधिकारिक यात्रा का हिस्सा थी।

संक्षेप में, प्रधान मंत्री की विचारहीन टिप्पणियों ने नौसेना को भी विभाजित कर दिया है।

विभाजन की लागत :

सांप्रदायिक विभाजन भाजपा के डीएनए में लिखा हुआ है। देश के अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों की बात करें तो ये यहाँ सबसे अधिक स्पष्ट तौर पर नज़र आता है। भाजपा ने इस समुदाय को सुनियोजित रूप से अपनी चुनावी गणना से बाहर कर दिया और मुस्लिम-समर्थकों को अपने समर्थकों की रैली का साधन बना दिया।

1947 में धार्मिक ध्रुवीकरण के कारण देश एक विभाजन से गुज़रा है। भौगोलिक क्षेत्र जहाँ मुसलमान बहुसंख्यक थे, पाकिस्तान बनाकर अलग हो गए थे, इस विभाजन में लाखों लोग विस्थापित हुए और सैकड़ों हजारों लोगों ने अपनी जान गंवाई।

इसके बाद भी भाजपा सांप्रदायिक विभाजन की अपनी राजनीति जारी रखे हुए है। जम्मू और कश्मीर में उसने एक कठोर नीति को अपनाया है जिसके परिणामस्वरूप हिंसा में तेजी से वृद्धि हुई है, और वहां की आबादी को लंबे समय संघर्ष की ओर धकेल रही है।

इसके साथ असम में भाजपा एक ऐसी प्रक्रिया का निर्माण कर रही है, जो चुनिंदा मुसलमानों को बदनाम कर देगी।

अन्य स्थानों पर इसने मुसलमानों को आतंकित करने के लिए ‘गोरक्षा’ से संबंधित मॉब लिंचिंग जैसी साजिश का इस्तेमाल किया है।

इस के खतरे को कम नहीं आँका जा सकता है।

प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार भारत में आज भी 200 मिलियन मुस्लिम हैं जो कि सबसे हिंसक हिंदुत्ववादी कट्टरपंथियों के लिए भी देश से बाहर निकाल दिए जाने की सोच के लिए बहुत बड़ी संख्या है, और आगे इनकी यह संख्या बढ़कर 311 मिलियन हो जाएगी, जो कि फिर भी देश की आबादी का 18% ही होगा, मगर इसके बाद भी देश के हिंदुओं के पास फिर भी लगभग 77% का भारी बहुमत बचता है।

सहारनपुर जिले की एक पट्टी, दिल्ली के उत्तर में, नेपाल सीमा के साथ बिहार के सभी रास्ते, एक दर्जन या ऐसे जिले हैं जहाँ मुसलमानों का प्रतिशत 25-40% के बीच कहीं भी है। पश्चिम बंगाल में ऐसे आधा दर्जन जिले हैं और असम की एक तिहाई से अधिक आबादी किसी भी मामले में मुस्लिम है।

इस गणना का उद्देश्य यह बताना है कि अगर इसी तरह से सांप्रदायिक विभाजन को प्रोत्साहित किया जाता है, तो देश इस बार विभाजित नहीं होगा, बल्कि देश का सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक ताना बाना छिन्न-भिन्न हो जाएगा।

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