अमरीका अफगानिस्तान से निकल तो रहा है मगर कई दशकों तक युद्ध से जर्जर हुए उस देश को हुए मानवीय नुकसान की विश्व को रत्ती भर भी चिंता नहीं है। जब अमेरिका और यूके ने अक्टूबर 2001 में ऑपरेशन एंड्योरिंग फ्रीडम शुरू किया, जिसमें बाद में नाटो सहयोगी भी शामिल हो गए। दशकों चले इस युद्ध में अफगानिस्तान में नागरिकों को हुए नुकसान का दस्तावेजीकरण करने के लिए कई प्रारंभिक वर्षों तक कोई तंत्र नहीं था। सबसे विश्वसनीय अनुमान लगभग एक दशक बाद आया जब संयुक्त राष्ट्र के साथ-साथ स्थानीय अधिकार समूहों की एक यूनिट ने इसका डाटा इकठ्ठा करना शुरू किया।

अमेरिका में ब्राउन यूनिवर्सिटी में वाटसन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स ने बाद में 2001 के पहले के आंकड़ों का दस्तावेजीकरण किया।

इसके अनुमानों के अनुसार, 2001 में आक्रमण के पहले वर्ष में कम से कम 2,375 नागरिक मारे गए थे, क्योंकि अफगानिस्तान में मुख्य रूप से तालिबान विरोधी समूहों के उत्तरी गठबंधन ने अमेरिकी वायु शक्ति और जमीनी आक्रमणों के समर्थन से देश का नियंत्रण वापस लेना शुरू कर दिया था।

उधर ब्राउन यूनिवर्सिटी के कॉस्ट ऑफ वॉर के सबसे हालिया आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका में 11 सितंबर 2001 के हमलों के मद्देनजर अल क़ायदा को मिटाने के लिए अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान पर हमला करने के बाद से युद्ध के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में अनुमानित 241,000 लोग मारे गए हैं।

सोवियत आक्रमण (1979 और 1989) के बाद से लेकर आज तक अफगानिस्तान में कुल 15,00,000 लोग मारे जा चुके हैं और 2000,000 लोग स्थायी रूप से अपंग हो चुके हैं। विनाशकारी युद्ध के कारण हुई भूख, बीमारी और चोटों के कारण भी सैकड़ों हजारों नागरिक मारे गए हैं।

अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान पर हमला करने के बाद मारे गए लोगों में से 71,344 नागरिक थे जो पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान की लंबी झरझरा सीमा के दोनों ओर मारे गए। अफगानिस्तान में कम से कम 47,245 और पाकिस्तान में 24,099 नागरिक मारे गए हैं।

अफगानिस्तान पाकिस्तान के साथ 2,670 किमी (1,659-मील) बड़े पैमाने पर पहाड़ी सीमा साझा करता है, जिसमें लगातार सीमा पार संघर्ष और अमेरिकी ड्रोन हमले हुए हैं।

अफ़ग़ानिस्तान बच्चों के लिए दुनिया में सबसे घातक जगहों में से एक बना हुआ है। अकेले पिछले एक दशक में अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन United Nations Assistance Mission in Afghanistan (UNAMA) ने कम से कम 7,792 बच्चों की मौत और 18,662 घायल होने के आंकड़े दिए हैं। कई घायल बच्चों ने सड़क किनारे बमों और हवाई हमलों के कारण अपने अंग खो दिए हैं।

महिलाओं ने भी इस युद्ध की भारी कीमत चुकाई है, युद्ध के कारण 3,000 से अधिक मौतें और 2010 से 7,000 घायल हुए हैं। पिछले एक दशक में साल 2020 अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए सबसे घातक साल रहा है, जिसमें 390 मौतें दर्ज की गई हैं।

अमेरिकी वायु सेना के अनुसार 2013 से 2019 तक उसने अफगानिस्तान पर लगभग 70,000 हवाई हमले किये और मेनुअल तथा ड्रोन से लगभग 27,000 बम गिराए। ओबामा शासनकाल में मुस्लिम देशों पर सबसे ज़्यादा बमबारी की गई जबकि डोनाल्ड ट्रम्प ने अफगानिस्तान पर 9,800 किलो वज़नी बम GBU-43 गिराया था जिसे मदर ऑफ़ आल बम भी कहा जाता है।

अफगानिस्तान की 38 मिलियन (38,000,000) की आबादी में से कम से कम 2.7 मिलियन (2700000) को युद्ध के कारण अपने ही देश से पलायन करने के लिए मजबूर हो गए हैं, अधिकांश अफगानी नागरिक पड़ोसी देश पाकिस्तान और ईरान तथा यूरोप में शरणार्थी बन गए हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 4,000,000 अफगानी नागरिक आंतरिक रूप से विस्थापित हैं।

अमरीका ने अफ़ग़ानिस्तान युद्ध में भारी पैसा खर्च किया था, अफगानिस्तान में युद्ध में अब तक 2.26 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च होने का अनुमान है। खर्च का बड़ा हिस्सा, $933bn, अमेरिकी रक्षा युद्ध बजट विभाग को आवंटित किया गया था, जिसे बाद में एक और $443bn द्वारा पूरक किया गया था।

शेष धनराशि में 296 अरब डॉलर पूर्व सैनिकों की चिकित्सा और विकलांगता देखभाल के लिए और 59 अरब डॉलर राज्य के युद्ध बजट विभाग के लिए शामिल हैं। अमेरिका ने पूरे युद्ध के दौरान अपने भारी उधारी के लिए ब्याज में कुछ 530 अरब डॉलर का भुगतान भी किया है। अमेरिका ने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण की पहल पर 144 अरब डॉलर खर्च किए हैं।

अमरीका अफ़ग़ानिस्तान से निकल तो गया है मगर दो दशकों में उसने तथा नाटो ने मिलकर अफ़ग़ानिस्तान में क्रूरता की सीमायें लांघ कर जो जन हानि की है और मानवीय त्रासदी पैदा की है उसका खामियाज़ा दशकों तक अफ़ग़ान जनता को भुगतना पड़ेगा।

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