वैज्ञानिकों ने 48,500 साल पुराना जानलेवा वायरस खोज निकाला है, इसके पीछे की कहानी ये बताई जा रही है कि आर्कटिक का गर्म तापमान क्षेत्र में मौजूद पर्माफ्रॉस्ट को पिघला रहा है, मिट्टी की परत के नीचे जमी बर्फ और मिट्टी को पर्माफ्रॉस्ट कहते हैं। इनके पिघलने से हजारों वर्षों से सोए हुए जानलेवा वायरस के जागने का खतरा है। ये इंसान और जानवर दोनों के लिए ही खतरा पैदा कर सकते हैं। वैज्ञानिकों ने इस वायरस का नाम पंडोरावायरस एडिमा (Pandoravirus Yedoma) रखा है।
पर्माफ्रॉस्ट किसी टाइम कैप्सूल की तरह होते हैं, जिसमें हजारों साल पुराने जीवों के शव और वायरस बचे हुए रह सकते हैं। पृथ्वी की बाकी जगहों की तुलना में आर्कटिक चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है, जिससे पर्माफ्रॉस्ट पिघल रहे हैं। वैज्ञानिक मान कर चल रहे हैं कि इनमें जमे हुए वायरस फिर से जिंदा हो जाते हैं तो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा हो जाएगा।
नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी में जलवायु वैज्ञानिक किम्बरली माइनर ने कहा, ‘पर्माफ्रॉस्ट के साथ बहुत सी चीजें तेजी से बदल रही हैं, जो चिंता का विषय है। हमारे लिए जरूरी है कि हम इन्हें जमाए रखें।’ पर्माफ्रॉस्ट में उत्तरी गोलार्ध का पांचवां हिस्सा शामिल है। इस बर्फ में जमे वायरस का पता लगाने के लिए फ्रांस के ऐक्स-मार्सिले यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में जीनोमिक्स के प्रोफेसर जीन मिशेल क्लेवेरी ने साइबेरियाई पर्माफ्रॉस्ट के लिए पृथ्वी के नमूनों का सैंपल लिया है। इस तरह बर्फ में सोए हुए वायरस को वह जॉम्बी वायरस कहते हैं।
उन्होंने पहला वायरस 2003 में खोजा था। इस वायरस के आकार के कारण उन्होंने इसे ‘जायंट वायरस’ नाम दिया था। ऐसा इसलिए क्योंकि इसे देखने के लिए एक सामान्य लाइट माइक्रोस्कोप की जरूरत पड़ती है। प्रोफेसर जीन के काम ने रूसी वैज्ञानिकों की एक टीम को भी प्रेरणा मिली, जिन्होंने 2012 में एक 30,000 साल पुराना वायरस खोजा। 2014 में जीन ने फिर एक 30,000 साल पुराने वायरस को खोजा और लैब में उसे जिंदा किया। हालांकि इस दौरान उन्होंने ध्यान दिया कि ये इंसानों या जानवरों के लिए खतरा साबित न हो। इसके बाद 2015 में भी उन्होंने कुछ ऐसा ही किया। लेकिन अब एक बार फिर उन्होंने एक खतरनाक वायरस को जिंदा किया है।
18 फरवरी को जर्नल वायरस में छपे अपने लेटेस्ट शोध में क्लेवेरी और उनकी टीम ने पांच नए वायरस को उन्होंने खोजा है, और कई वायरस को फिर से जिंदा किया, जो अमीबा कोशिकाओं को इनफेक्ट कर सकते हैं। जिनमें से सबसे पुराना 48,500 साल पहले का है, जो मिट्टी के नीचे मिला। मिट्टी की रेडियो कार्बन डेटिंग के आधार पर इनकी उम्र का पता चला। वहीं सबसे कम उम्र का वायरस 27,000 साल पुराना है, जो एक ऊनी मैमथ के अवशेषों की खाल में पाए गए थे।
इन पर्माफ्रॉस्ट में पाए जाने वाले वायरस इंसानों के लिए भी खतरा हो सकते हैं। 2012 में वैज्ञानिकों ने पुष्टि की कि 300 साल पुरानी एक महिला की जमी हुई ममी में चेचक के वायरस प्राप्त किये थे। इसी के चलते वैज्ञानिकों ने हाल ही में चेतावनी दी है कि वायरस से छेड़छाड़ दुनिया में फिर से एक नई और विकट महामारी ला सकती है।
यूनिवर्सिटी ऑफ अलास्का फेयरबैंक्स की वेबसाइट पर एक रिपोर्ट के अनुसार 1918 की महामारी के लिए जिम्मेदार इन्फ्लूएंजा स्ट्रेन को पैथोलॉजिस्ट जोहान हॉल्टिन ने अलास्का के सेवार्ड प्रायद्वीप पर ब्रेविग मिशन गांव में पर्माफ्रॉस्ट में संरक्षित एक महिला के फेफड़े के ऊतक में पाया था।
एनपीआर की एक रिपोर्ट के अनुसार, रूस में यमल प्रायद्वीप में पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना बड़े पैमाने पर एंथ्रेक्स के प्रकोप से जुड़ा था, जिसने 2016 में दर्जनों मनुष्यों और 2,000 से अधिक बारहसिंगों को एंथ्रेक्स से प्रभावित किया था।
ऐसा नहीं है कि ये सब अचानक से हुआ है, दुनिया के कई वैज्ञानिक और कांस्पीरेसी थियोरिस्ट्स इस ज़ोंबी वायरस को लेकर काफी समय से सजग और सशंकित हैं, उन्हें इस बात की आशंका थी कि भविष्य में कुछ देशों के वैज्ञानिक समूह मिलकर ऐसे वायरस को ज़िंदा करेंगे या बनाएंगे। मार्च 2017 को Tony The Great नामक एक लेखक ने एक किताब लिखी थी जिसका शीर्षक था ‘Zombie Virus: The Ultimate Weapon, Why Nations Are Building Them. Why Zombies are the Ultimate Army and How to Survive the Coming Zombie Apocalypse.’
बिल गेट्स ने भी कोरोना के बाद एक और महामारी की भविष्यवाणी के साथ एक और शब्द का प्रयोग किया था वो है Bio Weapon या जैविक हथियार। क्या कुछ देशों के ये वैज्ञानिक प्रकृति से छेड़छाड़ कर जलवायु परिवर्तन के बहाने मानव जाति के लिए ज़ोंबी वायरस जैसे नए संकट के लिए कार्पेट बिछा रहे हैं या फिर ये सब नए नए और मारक जैविक हथियारों की होड़ की तैयारी है ? जो भी है मगर एक बात तय है कि यदि इसी तरह दसियों हज़ारों सालों से सोये वायरसों को फिर से ज़िंदा करने की ये कोशिशें मानव जाति के अस्तित्व पर कभी भी गंभीर खतरा साबित हो सकती हैं।
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